सरहद के पार से
२२/८/१७ Aamby valley…लोनावला…
मैं पूरे परिवार के साथ परिवार एक साथ यहाँ घूमने आई हूँ |बच्चे अपने अपने कमरे में,अपनी अपनी पत्नी के साथ और जगमोहन और मैं अपने कमरे में |जगमोहन टीवी देखते हुए और मैं बाहर खुले में लकड़ी के झूले पर बैठी हुई,मुझे कमरे से ज़्यादा हरियाली के क़रीब रहना पसंद है |
आज दिन भर यहाँ बरसात हुई और इस वक़्त शाम के ७.३३ हुए है…संध्या का वक़्त है और आस पास से मेंढकों के टर्राने की बहुत तेज़ आवाज़ आ रही है, ध्यान में ख़लल तो नहीं…पर सुनने में बहुत अच्छा भी नहीं लग रहा |
कुछ कुछ बारिश बूँदें, मुझे भी भीगो रही है और अन्दर से पतिदेव के टीवी की आवाज़ इतनी तेज़ है कि बाबा राम रहीम को मिली सज़ा और पंचकूला में हुए बाबा के समर्थकों के दंगे की ब्रेकिंग न्यूज़ की पूरी आवाज़ बाहर तक आ रही है |दिमाग एक बार फिर से शून्य हो कर कभी अतीत, तो कभी वर्तमान में, झूले के संग झूल रहा था |
बांदीपोरा(कश्मीर) से जम्मू,जम्मू से दिल्ली और दिल्ली से पूना की फ़्लाइट और पूना से लोनावाला इस वैली में आने में तक साढ़े पंद्रह घंटे का वक़्त लग गया,थकावट बहुत है पर नींद नहीं आई, इसकी क्या वजह है मैं ख़ुद नहीं जानती | कश्मीर तो पूरा घूम चुकी,पर मुझे इंडिया में सब जगह घूमना था |हर सफ़र मेरे लिए बोर ही होता है |पर ये सफ़र बोर नहीं कहूँगी क्योंकि पूना से लोनावला का रास्ता बेहद खूबसूरत और मनमोहक था |
रस्ते भर बादल अठखेलियाँ करते रहे..कहीं कहीं बरसात आगे बढ़ने के लिए स्वागत के लिए तैयार खड़ी मिली और पहाड़ों पर जगह जगह बहते झरनों ने मन मोह लिया था…बहुत बार गाडी रोकने को कहा,कि गाड़ी रोको,मुझे झरनों के आगे खड़े होकर सेल्फी लेनी हैं और फेसबुक पर सबको लाइव दिखाना है कि देखों आज मैं अपने आप में कितना एंजॉय कर रही हूँ…पर किसी ने मेरी एक नहीं सुनी और गाडी अपनी रफ़्तार से भागती रही और मैं मोबाइल में पूरे सफ़र के यादगार लम्हों को कैमरे में कैद करने में व्यस्त हो गई |
मुझे अपना पिछला सफ़र याद है जब मैं गोवा गई थी, वो भी एक बोरिंग सफ़र, जो मोबाइल पर सॉलिटेयर जैम और कैंडी क्रैश गेम खेलते हुए काटा था| गोवा जाते हुए..फ़्लाइट में सो लेने के बाद भी टाइम पास नहीं हो रहा था तो क्या करती…मोबाइल से ही खेलने लग गई थी |
बस अब मैं खुद से खुद को एंजॉय करना चाहती हूँ…भूल जाना चाहती हूँ अपना अतीत,वो सब बातें जो रह रह कर मुझे हर वक़्त परेशान करती हैं कि मेरी,थोड़े से बड़ी उम्र वाले के साथ शादी हुई |हमारे यहाँ मेल चाहे हो या ना हो पर कुंडली मिलान जरुर होना चाहिए | आठ साल का उम्र में फरक किसी को ज्यादा नहीं लगा…सबने समझा-बुझा कर शादी के लिए हाँ करवा ली,पर वक़्त के बीतने के साथ साथ उम्र का ये अंतर हम दोनों में दरार के साथ साथ,कभी ना भरने वाली खाई का काम कर गया |
वक़्त पे बच्चे भी हो गए..बच्चें होने के बाद एक बार फिर से जिंदगी ने ज़बरदस्त यू टर्न लिए वो चली-चलाई जिंदगी मानों जैसे दिल्ली के ट्रेफिक की तरह जाम हो गई थी |अपनी घाटा पड़ी जिंदगी को आगे बढाने के लिए हमें हमारा शहर, भगौड़ों की तरह छोड़ कर दूर-दराज़ कश्मीर के बांदीपोरा में बसना पड़ा |
पहले पहले तो बहुत सालों तक एक डर बना रहा कि कहाँ हैदराबाद और कहाँ ये आतंकी शहर…जहाँ कब जिंदगी एक गोली पे खत्म हो जाए…किसी को भी नहीं पता था| पर धीरे धीरे ये शहर,यहाँ के लोग,उनका कल्चर और साथ ही साथ यहाँ के वर्दी वाले फौजी भी हम सब ने अपना लिए थे |
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कमरे से आती टीवी की तेज़ आवाज़ ने मेरे पिछले सारे ख्याब तोड़ कर मेरे हाथ में रख दिए |एक बार फिर से जगमोहन ने कमरे से आवाज़ मारी |मैंने इग्नोर कर दिया क्योंकि मैं जानती थी कि अब वो आवाज़ नहीं लगायेंगे,बल्कि बिना टीवी बंद किये यूँ ही सो जायेंगे |
मैं अभी अतीत को कुछ देर ओर जीना चाहती थी |मेरी अपनी यादों के साथ साथ, झूला भी हिलता रहा या मैं अपने पैरों से हिला रही थी,जो की मुझे महसूस नहीं हो रहा था..यूँ ही चल रहे टीवी में आ रही बाबा राम-रहीम की न्यूज़ और पंचकूला में हुए दंगों की ब्रेकिंग न्यूज़ से मुझे दो साल पहले की,बांदीपोरा की एक घटना की याद दिला दी और अब मैं सावन की घटा की तरह उडती-उडती दो साल पहले की यादों और उस घटना में खो गई…
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‘’श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन के कैंप पर आतंकी हमले को अंजाम दिया गया है। फिलहाल जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक किसी के भी हताहत होने की खबर नहीं है। सेना ने पूरे इलाके को सील कर दिया है और सर्च ऑपरेशन कर रही है।
सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है उसके मुताबिक आतंकवादियों ने सोमवार तड़के सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन के कैंप पर फायरिंग कर दी। सीआरपीएफ जवानों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 4 आतंकियों को मार गिराया है। हालांकि अभी यह साफ नहीं हो सका है कि सभी आतंकी मार गिराए गए हैं। पर उन्हें शक है कि एक आंतकी भागने में कामयाब हो गया है और वो यहीं आस-पास के घरों में छिपा हुआ है…मुठभेढ़ अभी जारी है।‘’
टीवी पे आ रही खबर के बीच में ही दरवाज़े की घंटी ने सबको डरा दिया|जैसे ही घर की बेल बजती थी घर में बैठे हुए सारे लोगों (मेरे समेत)के दिलों-दिमाग में अजीब सी हलचल..अजीब सा तूफ़ान उठना शुरू हो जाता था | और एक कोने में बैठा हुआ,वो अठारह साल का लड़का तो पूरी तरह से डर कर,दरवाज़े के पीछे छिप कर खड़ा हो जाता,पर हर वक़्त उसकी बंदूक के निशाने पर अम्मा जी ही रहती थी |
उस रात जब अम्मा जी की जिद्द पर और घर पे अकेली होने की वजह से अम्मा जी मुझे ज़बरदस्ती अपने घर ले गई थी कि’कल रात तो आतंकी हमला हुआ है,घर पे अकेल मत रुको…हमारे साथ,हमारे ही घर रात को रुक जाया करो..भले ही दिन में अपने घर चली जाना’…और मैं भी उनकी बात मान कर उनके घर चली आई थी |ये रात भी ओर रातों जैसी ही थी, सारे एक साथ बैठ कर रात का खाना खा रहे थे|घर पर सब सामान्य था,हर कोई अपने काम में व्यस्त…पर कहते हैं ना कि मुसीबत और आपदा कभी बता कर नहीं आती|
रात भी डोर बेल बजी थी,सबने यही समझा की कोई फौजी आया होगा,किसी को मदद की जरुरत पड़ी होगी…ये इलाका हिंदुस्तान और पाकिस्तान की सरहद है और फौजी इलाका, तो फौजी गाँव वालों की मदद लेते और देते रहते थे|फौजी और गाँव वाले यहाँ एक परिवार की तरह एक साथ रहते हैं |
‘’कोई फौजी ही आया होगा’’ये ही बडबडाते हुए अम्मा जी ने दरवाज़ खोला था..पर वो कहाँ जानती थी कि मदद करने वालों के यहाँ भी शैतान आतंकी के रूप में आ धमकेगा..वो बंदूकधारी अम्मा जी को धकेलते हुए घर के अन्दर घुसा और सबको बंदूक की नोक पे लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया |
आतंकी के आने के बाद से,जो भी घर में आता था, उसे थोड़ा सा दरवाजा खोल के बात करके भेज दिया जाता था | कोई भी आता था उससे किसी से बात नहीं करने दी जाती थी, किसी का फोन आता था वो भी उठाने नहीं दिया जाता था |बस सब अपनी जान हलक में रख,डर कर जी रहे थे |
और वो अम्मा जी..उनकी क्या कहूँ वो तो , उस आतंकी और उसकी उस बंदूक से डरे बिना भी,उस लड़के को हर वक़्त ये ही समझती थी कि “ अभी तू कितना छोटा है..क्यों किसी के बहकावे में आ कर इस गलत रस्ते पे चल पड़ा है |क्या तेरे अल्लाह को अच्छा लगता होगा कि तू इस तरह किसी की जान ले ?क्यों पाक मुसलमानों का नाम बदनाम कर रहा है..मुझे बस ये साबित कर दे कि ‘तेरा अल्लाह तेरे इस खून-खराबे से बहुत खुश है तो मैं खुद से ,तेरे हाथों से मरना स्वीकार कर लूंगी’ |
अम्मा जी की बातों से पहले पहले वो आतंकी लड़का बहुत भड़क जाता था और गुस्से में कभी घर का सामान,तो कभी अम्मा जी को ही धक्का मार के पीछे कर देता था |ज्यादा गुस्सा आने पर उसने अम्मा जी के नौ महीने के पोते को ही अपने कब्ज़े में कर लिया..वो बेचारा छोटा सा बच्चा कितनी ही बार रो रो कर सो गया,पर आतंकी का दिल नहीं पसीजा,अब अम्मा जी समेत घर वाले सब डरे हुए थे कि वो आतंकी कब क्या कर बैठे |
फिर भी अम्मा जी बार बार उस से कुछ ना कुछ कहती ही रहती..जैसे कोई पुराना रिकॉर्ड रुक रुक के बज उठता है ठीक वैसे ही अम्मा जी भी बोलने से बाज नहीं आती थी..“ क्या तुम्हारी माँ को पता है कि तुम ये काम कर रहे हो..आंतकवादी बन गए हो और तुम ये नहीं सोचना भी नहीं की मैं तुम से डर गई हूँ और तुम्हें बहकाने के लिए तुमसे ये सब बातें करती हूँ |
और हाँ! ये अच्छे से समझ लो की तुमने मेरे पोते को बंदूक की नोक पे लेकर,तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी है..जितनी तुम्हारी उम्र नहीं हुई उसे ज्यादा वक़्त तो मुझे इस आतंक के साये में जीते हुए हो गए हैं…बहुत से अपनों की मौत और उनकी लाशों को ढ़ोने के बाद तो,मैं तो वैसे भी पत्थर हो चुकी हूँ |
देख लड़के !मैं वैसे भी बहुत तरह की मुसीबतें झेल चुकी हूँ,घर में अपनों का तीन बार मातम मना चुकी हूँ..तू वैसे भी यहाँ से बच के तो जा नहीं पाएगा ,मार दिए जाएगा या पकड़ लिए जाएगा, हर हाल में मौत तो तेरी ही आनी है,तब क्या तेरी माँ को दुःख नहीं होगा की उसका बेटा मारा गया ?’’
शायद ये ही कमज़ोर पल था जब वो अठारह साल का आतंकी लड़का रो पडा और बोला “ मेरी माँ नहीं है, मेरे बाप ने अल्लाह और जिहाद के नाम पर मेरी माँ और बहन को मार डाला और मुझे तो जिहाद के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था..फिर भी मुझे,मेरे भाईयों की तरह ही आतंकवादी बना दिया |
मैं उस उम्र में था जब बचपन में, मैं माँ का दुप्पटा पकड़ता था तो अब्बू मुझे खिलौने वाली बंदूक पकड़ा देता था और दोनों भाई घंटों मुझे पूरा नंगा कर के धूप में घुमाते थे…सर्द रात में, घर से बार सोने को मजबूर करते थे और बस ये ही कहते थे कि एक जिहादी को तैयार करना है और तो और कई कई दिनों तक खाने को नहीं मिलता था..और आखिर में मैं, रोते रोते ऐसे मौहोल में रहने का आदि हो गया|
मैं शोर-शराबे से बचना चाहता था,मुझे एकांत पसंद था पर मेरी परवरिश बंदूक और गोलियों के साए में हुई…हर आतंकी हमले के बाद..जब आस-पास लाशें बिछी होती थी और मुझे उन्हें रौंद कर,अपने पैरों से ठोकरे मारते हुए वहाँ से निकलना सिखाया जाता था…उफ़ हर तरफ लाशें ही लाशें…खून से लथ-पथ..शरीर का अंग अंग धमाके से उड़ा हुआ …फिर भी उनके करीब सोने को मजबूर कर दिया जाता था…जिहाद ..जिहाद …जिहाद और बंदूकों से गोलियाँ चलनी शुरू हो जाती थी और फिर अय्याशी के रस्ते की ओर धकेल दिया जाता है |
इतना कहते ही वो लड़का फफक के रो पड़ा…
एक पल को तो उस लड़के की बात सुन कर हम सब कांप गए थे |पर उसी पल से अम्मा से ने अपने व्यवहार के अनुरूप,उसे प्यार देना शुरू किया,प्यार से उसे खाना खिलाती,उसके सर पर हाथ फेर कर उसके करीब बैठने को कहती |एक दिन उनके बेटे ने अकेले में कहा भी कि ‘‘माँ आप ये ठीक नहीं कर रही हो,वो एक आतंकी है..आपके प्यार से उसका व्यवहार कभी नहीं बदलेगा ,मौका मिलते ही वो हम सबको मार ही देगा और खुद भी मिल्ट्री या अपनी ही बंदकू से खुद को उड़ा देगा,प्लीज़ उसे इतनी महोब्बत मत दो’’|
अम्मा जी ने कहा “वो अपने संस्कारों के हिसाब से काम कर रहा है और मैं अपने संस्कारों के मुताबिक,हम नहीं जानते कि हम अब ओर कितना जीने वाले हैं…मौत पल-पल हमारे साथ है तो फिर क्यों ना मरने से पहले उसे इंसानों जैसा सम्मान तो दे दूँ |एक बेटे को, जिसे माँ का प्यार नहीं मिला,जिसे अपने बाप/भाई का प्यार ना मिला हो…अगर इंसान होने के नाते, उसे थोड़ा प्यार दूँ तो उसमें बुराई क्या है?
उनकी इसी बात से,उनके बेटे ने उनको टोकना छोड़ दिया.
इस आंतकी के चलते मैं भी अम्मा जी के घर में कैद होकर रह गई,पर मैं निश्चिन्त इस लिए भी थी कि एक हफ्ते के लिए मैं अपने घर में अकेली थी,मुझे फोन करके पूछने के लिए कोई नहीं था घर पे और वैसे भी हमारे कश्मीर में मोबाइल सेवा का बहुत अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता…वो कब आता-जाता रहता है..कब आएगा..कब जाएगा कोई पक्के तौर पर कुछ नहीं बता सकता |
तीसरे दिन भी घर का वैसा ही माहौल था | घर में अभी भी सब डरे हुए थे,घर में सब एक साथ सो नहीं सकते थे,एक ना एक को तो वो लड़का अपनी सेफ्टी के लिए बंदूक के निशाने पर रखता ही रखता था,पर अम्मा जी ने मुझे उसके निशाने पर नहीं रखने दिया था क्योंकि वो बहुत अच्छे से जानती थी कि मैं दिमाग से थोड़ी हिली हुई हूँ,मुझे मौत का डर नहीं है और मैं कभी भी किसी वक़्त भी उस लड़के से पंगा लेकर,उस छोटे से बच्चे और सबकी जान को खतरे में डाल सकती थी |अम्मा जी ने मेरे लिए मेहमान होने का वास्ता देकर मुझे उस से दूर ही रखा |
और मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूमती रहती थी कि पता नहीं किस तरह इन आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है कि ये कितने-कितने दिन तक ये लोग सोते नहीं, मैंने देखा एक पल को भी ये लड़का भी नहीं सोया था,जबकि अम्मा जी ने उसे कहा भी था कि ‘तुम तीन दिनों से सोये नहीं हो,कुछ देर के लिए सो जाओ ‘|
वो हँसने लगा कि ‘माँ ! अगर मैं सो जाउँगा तो,आप सब मुझे मिल्ट्री के हवाले कर दोगें |मैं जानता हूँ कि पल पल जिंदगी मुझ से दूर जा रही है…और माँ! श्मशान जैसा कुछ नहीं होता,ये जिंदगी ही श्मशान है,मौत है और मौत के बाद,जिहाद,आज़ादी या जन्नत जैसा कोई भी मुक़ाम नहीं होता |जिंदगी वैसे भी फैला हुआ एक रेगिस्तान है ,जहाँ माँ हमारे पास नहीं भी हो तो भी वो अपने करीब साफ़ साफ़ दिखाई देती है..भले ही वो हमारी मृगतृष्णा ही होती है,पर माँ करीब होती है ‘’|
इस लड़के की बातों का अम्मा जी के पास इसका कोई भी जवाब नहीं था |
वो मुस्करा के बैठ गया…..
कश्मीर की पहाडियों में बांदीपोरा जिला है, जिसके एक कस्बे में हम सबके घर थे ,बांदीपोरा की आबादी ४लाख के करीब थी और इस कस्बे की आबादी लगभग २५,००० होगी |
मुस्लिम आबादी ज्यादा और हिन्दू परिवार ३..4% से ज्यादा नहीं थी तभी तो लगभग सभी अम्मा जी के घर और उनके घर के सदस्यों को बहुत अच्छे से जानते थे क्योंकि इस से पहले हुए आतंकी हमले में इसी परिवार के दो जवान लड़के,कुछ स्कूली बच्चों को आतंकियों से बचाते हुए शहीद हो चुके थे..जिन्हें मरणोपरांत शौर्यचक्र भी मिला था |
यहाँ अम्मा जी अपने दो बेटे खोने के बाद,अपने बाकि दो बेटों के परिवार के साथ रहती थी और मेरी सबके करीबी पड़ोसन भी थी |बांदीपोर सरहद से बहुत करीब था…इस लिए ये आतंकियों के लिए हिंदुस्तान में घुसपैठ करने के लिए भी फ़ेमस था और इसी लिए यहाँ सेना की गश्त भी बहुत तगड़ी थी..फिर भी कभी-कभी आतंकी नज़र बचा का या सुरंग बना कर हिंदुस्तान में दाखिल होने में कामयाब हो जाते थे |
वहाँ पर पहरे पर खड़े रहने वाले सिपाही अब अपने घर के सदस्यों जैसे ही हो गए थे..वो सब सेना के सिपाहियों के साथ अपना हर त्यौहार मनाते थे..ताकि घर ना जाने वाले सैनिकों को अपने घर ही याद ना आये |खास कर राखी वाले दिन तो यहाँ एक मेले जैसे दृश्य सा अनुभव होता था |
ऐसा ही इस बार भी कुछ सैनिक अपने घर जाने की ख़ुशी मना रहे थे तभी पता चला चार आतंकवादी सरहद पार करके भारत में घुस गए थे |तीन को तो मार गिराया गया था, पर एक का अभी तक पता नही चल रहा था और छुट्टी पे जाने वाले सैनिक भी, अपने घर को,अपनों को भूल के,उस एक आतंकी को ढूंढने में लगे थे क्योंकि उनका घर जाना या ना जाना,सब सरहद के पार की गतिविधियों पे आधारित रहता था |
अम्मा जी समेत, घर के सभी सदस्यों को सब लोग/सैनिक पहचानते थे और माताजी तो अपने गुस्से और प्यार वाले स्वभाव से प्रख्यात थी ही |छोटा सा क़स्बा,तो सब लोगों का मिलना-जुलना होता ही रहता था |सब लोगों के ध्यान में भी था कि चार दिन से अम्मा जी के घर से कोई भी सदस्य बाहर नहीं निकला और उनके घर जाने पर भी ठीक से जवाब नहीं मिलता था और मेरे घर की तरफ इस लिए किसी का ध्यान नहीं गया होगा कि हम लोग अपने काम के सिलसिले में अक्सर बाहर निकल जाया करते थे..पर इस बार मेरा मन नहीं था,तो इसी वजह से मुझे छोड़ कर सब लोग अपने अपने काम से एक हफ्ते के लिए बाहर ही गए हुए थे|
आखिर एक सैनिक ने अम्मा जी के घर की बेल बजाई |सब लोग सचेत हो गए कि अब क्या होगा…बाहर कौन होगा…कैसे उसे टालेंगे ??
सोहनालाल भाई साब, ने घर का दरवाजा खोला सामने देखा तो सैनिक वीर सिंह खडा था. उसने पूछा ‘’भाई क्यों चार दिन से आपके घर वाले दिखे नहीं.. सब ठीक तो है?’’
वीर सिंह ने घर के अन्दर नजर घुमाई,सामने सोहनलाल की पत्नी चादर ओढ़े सोई हुई थी |सोहनलाल ने कहा ‘बस पत्नी की तबियत ठीक नहीं’ |पर आखिर तो वो सैनिक था,उसे कुछ ठीक नहीं लगा..सबके चहेरे पे उसे एक डर दिखाई दिया |उसने अम्मा जी और मेरी आँखों में झाँका तो हमने नजरे नीची कर ली कि सच बोलना नहीं था और हम झूठ वो बोल नहीं सकती थी |
शायद सैनिक वीर सिंह को यकीन हो गया कि कुछ तो गड़बड़ है, उसने वापस दरवाजा थोड़ा खोल के अन्दर जाने की कोशिश की तभी सोहनलाल गुस्सा में बोला ‘’ वीर सिंह !तेरी भाभी सोई है और मैं तुम्हें अन्दर नहीं आने दे सकता,तुम दो दिन के बाद आना’’|
तब उसे वहाँ से जाना पड़ा,उसी पल से बाहर से कुछ हलचल one का आभास हुआ…ऐसा महसूस हुआ जैसे..पल-पल घर पर कुछ सैनिक नज़रे गड़ाए हुए ताक पर बैठे हैं|सब देख रहे थे कि सोहनलाल दिन में एक बार बाहर जाता और किसी से भी बात किये बिना वो खाने का सामान ले के घर पे पहुँच जाता |
कोई ना कोई सैनिक किसी न किसी बहाने सोहनलाल के घर के आजू बाजू चक्कर लगाता ही रहता था |
आखिर सातवें दिन अचानक दरवाजा खुला और अम्मा जी बंदूक लेकर बाहर आई और जोर से बोली अब कैसे मारेगा तू मेरे घर वालों को,अब तो तेरी बंदूक मेरे पास है. तू हम सबको मारने चला था..इतने दिनों से हमें टारगेट पे रखा हुआ था…तुझे क्या लगा हम सब तेरे से डर गए…..
बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक वो लड़का रसोई घर में से बड़ा चाक़ू ले के दूसरे कमरे में घुस गया और अन्दर से कमरे को बंध कर लिया |
सब कुछ इतनी जल्दी से हुआ कि किसी कि भी कुछ समझ में नहीं आया..पर उसी वक़्त बहुत सारे सैनिकों ने पूरे घर को घेर कर..हम सबको अपने घेरे में ले कर घर से बाहर सुरक्षित निकाल लिया और घर पर कब्ज़ा कर लिया|
पर अब डर इस बात का था कि वो जिस कमरे में गया था वहाँ सोहनलाल का बेटा सोया हुआ था |अब सब के हाथ वापस बंध गए कि अब क्या करे ?
तभी अचानक से एक तेज़ आवाज़ आई और दरवाज़ा खुल गया, कुछ सैनिक बहुत फुर्ती से अपने अपने हथियार लिए कमरे में दाखिल हो गए..सबने देखा की उस लड़के ने अपने हाथ की नस काट ली थी और उसके हाथ में से खून बह रहा था. सैनिको को वो ज़िंदा चाहिए था इसलिए वो जल्दी ही उसे अस्पताल पहुँचाने की कोशिश करने लगे,पर उसने हाथ जोड़ के कहा की अब मै नहीं बचूंगा मुझे अम्मा जी से आखिरी बार मिलना है,पर सैनिक ने मना कर दिया कि कोई नहीं मिलेगा तुम्हें |
पर अम्मा से घेरा तोड़ कर, घर के अन्दर उसके करीब गई और उन्होंने सबसे कहा मरने वाले की खवाहिश पूरी करनी चाहिए. लड़के ने हाथ जोड़ के कहा कि ‘’माँ! आज अपने इस अनोखे रिश्ते की सीमा रेखा टूट गई…दुनियादारी के ठप्पे से दूर,मैंने अपने मन से एक रिश्ता कायम किया था…पर वो मैं चाह कर भी पूरा निभा नहीं सकता था |मैं भी एक अच्छा इंसान बनना चाहता था पर मुझे मौलवी के कहने पर एक जेहादी बना कर..इंसानियत का खून करने के लिए छोड़ दिया गया|
मैं जन्म से आतंकवादी नहीं था,टीवी,इन्टरनेट और अख़बारों में छपने वाली खबरे मुझे भी परेशान करती थी,बच्चों के स्कूल पर आतंकी हमला,हिंदुस्तान की संसद पर आतंकी हमला, पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में हथियारों से लैस आतंकवादियों, विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों और शिक्षकों पर अंधाधुंध गोलियां चला देते हैं|हर जगह मासूम लोग टारगेट किये जा रहे हैं,मेरे मन में भी हजारों सवाल उठा करते थे|
मेरी माँ के पास मेरी किसी भी बात का जवाब नहीं हुआ करता था,बस वो रो दिया करती थी और उठ कर टीवी बंद कर देती थी..मुझे इन्टरनेट और अख़बारों से दूर रखती थी…पर मेरे अब्बु ने मौलवी के साथ मिल कर मुझे जिहाद के रस्ते पर धकेल दिया,पर आपसे मिलने के बाद मुझे एक अच्छा इंसान बनने की इच्छा भी जागी थी,पर अब बहुत देर हो चुकी थी, अगर मै पकड़ा जाता तो जेल में बुरी तरह मरता,मैं दूसरा कसाब बन कर नहीं मरना चाहता था |
मुझे तो यहीं,आपके करीब,इसी घर में मरना था,मेरे लिए इस वक़्त आप ही मेरी माँ के रूप में मेरे सामने थी..माँ आप दुआ करना की मुझे अगले जन्म में मेरे अब्बु जैसे अब्बु ना मिले और फिर आहिस्ता से उस लड़के की आँखे बंध हो गई |अम्मा जी के साथ साथ हम सब की आँखों से दो बूंद आँसू गिर पड़े और मन ही मन में उस बच्चे की आत्मा की शांति के लिए प्राथर्नाओं का सिलसिला शुरू हो चुका था |’’
टीवी पर एक और आतंकी हमले से मैं अतीत से वर्तमान में लौट आई …ये न्यूज़ ने मुझे एक बार फिर से हिला कर रख दिया और उस आतंकी बच्चे कि फिर से याद आ गई..;
‘भारत में आज ईद की नमाज के तुरंत बाद बम विस्फोट होने से कम से कम तीन लोगों की मौत हो गयी और दो बुजुर्ग घायल हो गये। लोग ईद की नमाज के घर लौट रहे थे तभी यह विस्फोट हो गया।
इस वक़्त अतीत और वर्तमान फिर से एक साथ खड़े थे..इसे ज्यादा अब और कुछ सुनने और याद करने की हिम्मत मुझ में नहीं बची थी…झूले से उठ कर फटाफट सबसे पहले मैंने टीवी बंद किया,मोबाइल पर वक़्त देखा तो रात के बारह बज चुके थे…और बारिश भी अभी तक हो रही थी..मेंढक भी वैसे ही लगातार टर्र-टर्र कर रहे थे…मैं अपने कमरे के बिस्तर पर निढाल हो गई |