बेटी की चतुराई
उस दिन मैं घर पे अकेली थी और पापा! मम्मी,दादी और विक्की को लेकर आने वाले है |पर पापा तो घर आते ही सबको छोड़ दादी पर बेकार का चिल्लाने लगते थे| दादी पापा के गुस्से से बहुत डरती थी..उनके सामने भी नहीं आती थी | इस बात को लेकर मम्मी भी उनको बहुत समझती थी,पर पापा नहीं सुनते थे |
आज मैंने सोच ही लिया था कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा इस लिए जैसे ही पापा रात को सबको लेकर घर आए,हमारा नाटक शुरू हो गया|
जैसे ही पापा ने चाय का कप उठाया वैसे ही मैं भागती हुई अन्दर वाले कमरे से आई और सीधा पापा से टकरा गया…सारी गर्म चाय पापा पे ही गिरी | ये देख कर मम्मी मुझे मरने दौड़ी,मुझे पकड़ कर उसके कान मरोड़ कर जैसे ही मरने लगी तो दादी ने मुझे छुडवाते हुए कहा कि ‘’रहने दो बहु ! अभी बच्ची है है…समझ समझ जाएगी ‘’
तभी मम्मी गुस्से में दादी से बोली ‘’ आप बीच में ना बोले माँ! आप अपने कमरे जाए और वहाँ बैठ कर भजन करे..बच्चें कैसे सँभालने हैं ये मैं देख लूंगी…जब देखो हर बात में अपनी टांग अडाती रहती हो ‘’
तभी पापा ने गुस्से में कहा ‘’ये क्या तमीज़ है रमा ! क्या माँ से ऐसे बात की जाती है..क्या तुम मेरे पीछे भी माँ से ऐसे ही गुस्से से बोलती हो ?
इस से आगे पापा कुछ बोलते..मैं ही बीच में बोल पड़ी ‘’पापा!’’बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से पाओगे’’
आप भी तो दादी से हर टाइम गुस्से से ही बोलते हैं..हम सब इसी घर में रहते हैं..हम सब भी वही सीखेंगे जो आप हमें सिखायेंगे और आप सोचों ..कल विक्की बड़ा होकर ऐसे ही गुस्से में मम्मी से बात करेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा ?
पापा को अब खुद के किये पर शर्म आ रही थी उन्होंने हम सब से माफ़ी ओर कहा ‘’ सॉरी बच्चों ! आज से मैं ऐसी कोई गलती नहीं करूँगा, जो किसी को तकलीफ दे |’’
सीख …घर के बड़ों को भी बहुत सोच समझ के बोलना चाहिए