मन…………
एहे मेरे मन तू
मुझे ये बता
क्यों तू अकेला सा है ..
क्यों तेरा ये चेहरा ..
बुझा सा है
जीवन के पथ पर तू
क्यों यु पड़ा अकेला सा है ..
अपने राही को ले
थाम उसका हाथ ..
मुश्किलों का कर सामना ..
तू चंदन सामान बन ..
दे अपनी खुशबु सब को
पर चिता की लकडी ..मत बन
बन कर खुशबु ..छा जा
हर जीवन को महका जा ..
अपना हर्ष मुखित
चेहरा लिए …….
ले दुनिया को जीत तू …
निर्भयता से कर सामना …
हर मुश्किल का तू ..
अपनी आप बीती को छोड़ .
वर्तमान मे जीना सीख ..
अपनी स्मृतिय्यो..को.
रख साथ मे
धर्य रख ….
उठ चल आगे बढ..
उस चींटी के समान तू ….
जो ना कभी डरी किसी से
जिस के आगे हाथी ने भी मानी हार है …
एहे मेरे मन तू
मुझे ये बता
क्यों तू अकेला सा है ……………….
…(कृति…अनु……)
सकारातमक सोच लिए अच्छी रचना
जो ना कभी डरी किसी से
जिस के आगे हाथी ने भी मानी हार है …
एहे मेरे मन तू
मुझे ये बता
क्यों तू अकेला सा है ……………….
अनु जी सुंदर कृति आप की ..!!
बड़ा अच्छा लगा आप से जुड़ के …
I am surprised …aap ktiti ..anu …hain …main ..anpama ki sukrity hoon ..!!
Iishwar hai ..kahin na kahin …!!
SHUBHKAMNAYEN AAPKO.
जो ना कभी डरी किसी से
जिस के आगे हाथी ने भी मानी हार है …
एहे मेरे मन तू….. सकारातमक सोच..बहुत अच्छी रचना