जीवन है ये एक कटी पतंग…………..
जीवन है ये
एक कटी पतंग
यह मै मानती हू
दिन को तो ढलना है
शाम होने पर
सब जानते है
फिर भी …सूरज सुबह होते ही आता है
डरता नहीं डूबने के डर से ,
वो ऊबता नहीं ,अपनी ही दिनचर्या से
रोज़ नयी हिम्मत जुटा ..
बिखेरता अपनी रोशनी
इस सारे जहां में
फिर मै क्यों घबराऊ
आने वाले कल से …
क्यों डर जाऊ
अपने अंतिम समय से
उड़ती पतंग की डोर
को किसी की डोर तो काटेगी
पर काटने से पहले ,क्यों ना मै अपनी
ऊँची से ऊँची उड़न उड़ जाऊ
जीवन है ये
एक कटी पतंग
(…..कृति ….अनु……)
what a fact ….keep writting anuradha ji
aap bhut accha likhti hai
gargi
http://www.feelings44ever.blogspot.com
सही कहा … जीवन है एक् कटी पतंग सा …
कटता है बार बार , पर फिर उड़ता भी है नए जोश और होसले के साथ …