कुछ पलो के ख्याब….
कुछ पलो के ख्याब थे ,जिंदगी बन के लौट गए .. अजीब बात थी|
रात की खामोशी भी शोर मचा के लौट गई.. अजीब रुत थी ||
चिंगारी जो रखी जुबां पे ,वो अंगार बन गई ….अजीब एहसास था |
दिल्लगी में दिल्लगी ,इस दिल की आग बन गई …अजीब एहसास था ||
रफ्ता रफ्ता वो जिंदगी से यूँ गई ….कभी सोचा भी ना था |
खबर भी ना लगी और वो अजनबी बन गई….कभी सोचा भी ना था ||
वाकिफ नहीं थी वो मेरे इस जलते जुनून….ये कैसी तड़प थी |
परिंदे भी आकर झील से प्यासे लौट गए …ये कैसी प्यास थी ||
हम लडखडा जाते है एक हल्की सी ठोकर के बाद …..ये अब किसका ख्याब है |
कोई अब आवाज़ भी दे तो धोखा सा लगता है …ये अब किसका इंतज़ार है ??
(((अंजु….अनु )))
koi aavaj bhi de to dhokha lagta hai..ye ab kaisa intjar hai ?
bahooooooot badhiyaa
दिल के एहसासों को बखुबी शब्दों मे ढाला है आपने। आभार।
दिल के एहसासों को बखुबी शब्दों मे ढाला है आपने। धन्यवाद|
bahut hi achhi gazal
dil ko sakuun deti gajal…:)